क्या कहें क्या ना कहें
क्या कहें क्या ना कहें
गीत बन
ढलते रहें
श्रम से भीगी जो हो साँसें
वक़्त खेले उल्टे पाँसे
मंज़िलें कदमों में होंगी
शर्त बस -
चलते रहें
राह जब दुश्वार होगी
जीत होगी हार होगी
जिस्म की इमारतों में
ख़्वाब बस
पलते रहें
एक धुँधली सी किरण है
रिश्तों में जो आवरण है
साँस की गर्मी से अपनी
मोम से
गलते रहें
३ फरवरी २०१४
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