अनुभूति में
राजा अवस्थी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
जिंदगी रचती
तुमने ही बिन पढ़े
पुराने गाँव से
बाल्मीक की प्रथा
हाशिये पर आदमी ठहरा
गीतों में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
आस के घर
कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के
बादल
छाँव की नदी
छितरी छाँव हुआ
झेल रहे हैं
पहले
ही लील लिया
मन
बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की
सुकुमार काया
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उम्र भर बढ़ता
रहेगा
प्रगति के किस पंथ निकला
रथ शिखर चढ़ता रहेगा
स्लेट दुर्लभ वस्तु अब भी
जमाना कम्प्यूटरी
ककहरा को ही झलंगी
कहाँ तक पढ़ता रहेगा
कुएँ का पानी
रसातल की तरफ जाने लगा
खाद ऐसा, भूमि की ही
उर्वरा खाने लगा
बैल हल की जरूरत से
मुक्त यंत्रों ने किया
बेवजह हल-फाल शिल्पी
कहाँ तक गढ़ता रहेगा
अग्रगामी शोध, संतति के
फले -फूले अभी
तीव्रगामी पुष्पकों से
सूर्य तक छू ले अभी
बंधु कर स्वीकार
जड़ता छोड़, यंत्री, यंत्र बन
अकेला इस खोह में तू
कहाँ तक लड़ता रहेगा
सृजन की, संघर्ष की
वह चेतना संकल्पशाली
कंदराओं से निकल
अट्टालिका नभ तक बना ली
बीज ने अंकुर दिया, तो
पेड़ होने के लिए
सम -विषम मौसम सहेगा
उम्र भर बढ़ता रहेगा
बाल दीपक, द्वार पर रख
रोशनी से भर गली
बुझाने को हो भले ही
पवन प्यासी चुलबुली
मिटा देगा हारने की
अटकलें सम्भावनायें
अँधेरे से दीप
अपनी उम्र भर लड़ता रहेगा
२३ दिसंबर २०१३
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