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अनुभूति में राजा अवस्थी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
जिंदगी रचती
तुमने ही बिन पढ़े
पुराने गाँव से
बाल्मीक की प्रथा
हाशिये पर आदमी ठहरा

गीतों में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
आस के घर

कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के बादल
छाँव की नदी
छितरी छाँव हुआ
झेल रहे है
पहले ही लील लिया

मन बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की सुकुमार काया

 

बाल्‍मीक की प्रथा

बाल्‍मीक की प्रथा निभाई
हमसे नहीं गई

जप-जप उल्‍टा नाम कहाँ तक
ब्रह्म समान बनें
सोच-समझ अनुभव के जाए
तीर कमान तनें
रामायण की सीता गाई
हमसे नहीं गई

दुनिया दारी बाहर यारी
के झण्‍डे बाँधे
भीतर-भीतर शातिर चालें
चलते दम साधे
उनकी गठरी और उठाई
हमसे नहीं गई

गाँव की गलियों में अब
बारूद पनपता है
अंधी जाग्रति वाला अंधा
नाग सनकता है
दौड़ भयंकर यह रुकवाई
हमसे नहीं गई

चम्‍पा भी अब चीन्‍ह रही है
किस्‍मत के काले अक्षर
पूछ रही है भाग हमारे
किसने ये डाले अक्षर
उत्तर वाली पंक्‍ति पढ़ाई
हमसे नहीं गई

४ मई २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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