अनुभूति में
राजा अवस्थी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ
पहले
ही लील लिया
गीतों में-
आस के घर
कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के
बादल
छाँव की नदी
झेल रहे हैं
मन
बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की
सुकुमार काया
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खेतों पर उन्नति के बादल
खेतों पर उन्नति के बादल
देखे-भाले हैं
शहर गए मजदूर
खेत सब बैठे-ठाले हैं
अम्मा दरती धान
कुनैता चावल नित उगले
तंगी में भी पूरे घर को
खाने भात मिले
अब तो अम्मा और कुनैता
दोनों नहीं रहे
बैठक अपने सूनेपन का
किससे दर्द कहे
हिरण-चौकड़ी गाँव भरे
गलियों में छाले हैं
अमरुदों का बाग
सख्त पहरे में जकड़ा है
रखवाले ने गोबर को
परसों ही पकड़ा है
आम सिंघाड़े केले
कबसे बाँटे नहीं गए
बनियागिरी बहुत अपनाई
घाटे नहीं गए
नेताओं का खेत गाँव
गायब रखवाले हैं
२३ जनवरी २०१२
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