अनुभूति में
राजा अवस्थी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ
पहले
ही लील लिया
गीतों में-
आस के घर
कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के
बादल
छाँव की नदी
झेल रहे हैं
मन
बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की
सुकुमार काया
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अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
अब नहीं होते
हृदय के तार झंकृत
सो गए हैं
राग भरकर रागिनी में
कोई अब गाता नहीं
पीठ दे बैठे हृदय दो
कोई समझाता नहीं
दुख किसी का, दुखी कोई
लोग ऐसे
खो गए हैं
सतह से उठते हुए पल
दृष्टि चौकस रख न पाए
पोटली उपलब्धियों की
छीन कोई ले न जाए
खेत, फसलें, बाड़ खाकर
सिपाही सब
सो गए हैं
साथ रहकर, साथ रहना
सीख जाते साथ ही तो
साथ दोनों हृदय होते
देह तो थी साथ ही तो
रेत गीली है अभी तक
नयन किसके
रो गए हैं
२३ दिसंबर २०१३
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