अनुभूति में
राजा अवस्थी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ
पहले
ही लील लिया
गीतों में-
आस के घर
कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के
बादल
छाँव की नदी
झेल रहे हैं
मन
बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की
सुकुमार काया
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पहले ही लील लिया
सुखुआ का सारा
सुख चैन
समय बैरी ने
पहले ही लील लिया है
अरहर के नूपुर तो
पाले ने छीन लिए
आमों को बौरों से
ओलों ने बीन लिए
बचे हुए खेतों को
फेक्ट्री के दानव ने
पहले ही लील लिया है
कामचोर बना गया
मनरेगा गाँव को
मिलते मजदूर नहीं
छा लेते छाँव को
बखरी के एक बड़े हिस्से को
बिजली ने
पहले ही लील लिया है
रामदीन पालें पर
गाय कहाँ पालेंगे
रोज नए जुमलों के
तीर लोग घालेंगे
गाँव की चरोखर को
बढ़ती आबादी ने
पहले ही लील लिया है
२३ दिसंबर २०१३
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