अनुभूति में
राजा अवस्थी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ
पहले
ही लील लिया
गीतों में-
आस के घर
कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के
बादल
छाँव की नदी
झेल रहे हैं
मन
बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की
सुकुमार काया
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आलमशाह हुए
जहाँपनाह हुए
पहरुए आलमशाह हुए
लोकतंत्र बेधड़क
लोक की चिन्ता छोड़ी
तंत्र, हाथ में हंटर
जनता, बेबस घोड़ी
शब्दकोश से शर्म मिटाकर
बेशर्मी की हद तक जाकर
तानाशाह हुए
आयोजन में
तंत्र -मंत्र -षडयंत्र लगे हैं
भूखी प्रजा भ्रष्ट आसंदी
जिन्न जगे हैं
चना खेत में खाकर इल्ली
पोंक रही है जाकर दिल्ली
खेत तबाह हुए
चोर-शाह की पहचानों के
मानदण्ड टूटे
खच्चर, घोड़े, गधे बँधे हैं
सभी एक खूँटे
शेर प्रश्न चिह्नों के मारे
बदले हुए सभासद सारे
जहाँपनाह हुए
भेड़िये आलमशाह हुए
२३ दिसंबर २०१३
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