अनुभूति में
राजा अवस्थी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ
पहले
ही लील लिया
गीतों में-
आस के घर
कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के
बादल
छाँव की नदी
झेल रहे हैं
मन
बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की
सुकुमार काया
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छितरी छाँव हुआ
बेशक नहीं रहा वह अपना
उन्नत गाँव हुआ
घनी पत्तियों वाला
कैसा छितरी छाँव हुआ
रहे नहीं अपनों के अपने
टूट गए सपने
जाकर शहर गाँव कब लौटे
लखटख से टखने
कुछ तो हाथ बँटा लेते
उन्नति की गति बढ़ती
कुछ खोने -पाने की चौसर
अपना दाव हुआ
सड़क बनी, बिजली भी आई
बंद कुनैते हैं
पत्थर की चकिया को दादी
घर में सेंथे है
बाबा शिखर संस्कारों के
पोते हड़बड़ गामी,
परम्परा आधुनिकता का
यूँ उलझाव हुआ
खेती के रकबे ने बढ़कर
लीले सभी चरोखर
भीतर का पानी पाताली
ऊपर सूखे पोखर
सुरसा हुई भूख स्वारथ की
रिश्तों पर फन मारे
लाभ -हानि के गुणा -भाग में
जोड़ -घटाव हुआ
अनपढ बस्ती के सब बच्चे
लगें बाँचने आखर
भूमिहीन बरुआ के घर भी
आ जाएँ हल -बाखर
अँधियारे में उम्मीदों के
उजियारे रोपें
समय,भँवर में डगमग करती
जर्जर नाव हुआ
२३ दिसंबर २०१३
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