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अनुभूति में राजा अवस्थी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ

पहले ही लील लिया

गीतों में-
आस के घर

कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के बादल
छाँव की नदी
झेल रहे है

मन बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की सुकुमार काया

 

छाँव की नदी

आग लिए बैठी है छाँव की नदी

नर भक्षी सिंह हुए
सिंहासन के सारे
किससे फरियाद करें
राजा जी के मारे

धर्मराज चौसर का शौक पुनःपाले हैं
कंठ से प्रवाहमान दाँव की नदी

जंगल सब खत्‍म
राज में जंगल व्‍याप गया
आतंकित ऋतुएँ सब
मौसम तक काँप गया

रेत बढ़ी सूख गया पानी संवेदन का
बैठी है घाट तके नाव की नदी

पाँव की प्रबलतम गति
अवरोधों की मारी
हाथ नहीं आया कुछ
बनिये से की यारी

मोल हमारा उसकी नजरों मे ग्राहक भर
उमड़ाई बाढ़ भरी साव की नदी

३ सितंबर २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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