अनुभूति में
राजा अवस्थी
की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
जिंदगी रचती
तुमने ही बिन पढ़े
पुराने गाँव से
बाल्मीक की प्रथा
हाशिये पर आदमी ठहरा
गीतों में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
आस के घर
कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के
बादल
छाँव की नदी
छितरी छाँव हुआ
झेल रहे हैं
पहले
ही लील लिया
मन
बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की
सुकुमार काया
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हाशिये पर आदमी
ठहरा
शहर में अब संस्कृति का
चेहरा उद्दण्ड है
ख्यातिनामी सफे पर
पसरा हुआ पाखण्ड है
प्रगति के सोपान का
बेसुर हुआ क्यों ककहरा
मोर्चे दर मोर्चे हैं
उम्र भी बढ़ती रही
ढाकने को हार अपनी
तर्क नित गढ़ती रही
आँख में उम्मीद
होगा बस्तियों का दिल हरा
एक जिम्मेदार वारिस की
ललक बैचैन है
छा गए दायित्वहीना-
सोच के दिन-रैन हैं
माँगने पर रोटियाँ देता नहीं
है पुत्र बहरा
४ मई २०१५
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