अनुभूति में
कृष्ण नंदन मौर्य की रचनाएँ-
कुंडलिया में-
झूठ कपट में जो निपुण (कुंडलिया)
नयी रचनाओं में-
अंधे न्यायालय को
कटा कटा गाँव
कस्तूरी की गंध
जादू वाली छड़ी
जिस आखर से खुले
गीतों में-
अब मशीने बोलती हैं
क्या उड़ने की आशा
नदिया के उस पार
मन को भाता है
रहे सफर में
संकलन में-
विजय पर्व-
राम को तो आज भी वनवास है
नया साल-
नये वरस जी
शुभ दीपावली-
उजियारे की बात
जग का मेला-
तितली
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झूठ-कपट में जो
निपुण (कुंडलिया)
झूठ-कपट में जो निपुण, उनको सुख
सम्मान।
जो बैठे सच को पकड़, भोगें वे अपमान।
भोगें वे अपमान, अकारथ उनका जीना।
किया मनुज तन व्यर्थ, न हक दूजों का छीना।
और कहाँ आनंद मिले जो लूट-झपट में।
सुख के सारे मंत्र छिपे हैं झूठ-कपट में।
पथरीला पथ धर्म का, क्यों खाते हो चोट।
चल अधर्म के हाइवे, कर लो लूट-खसोट।
कर लो लूट-खसोट, नियम की सिगड़ी फेंको।
भ्रष्ट-तंत्र के ओवन में, अपने हित सेंको।
श्रम-सत्तू तज, जोड़-जुगत का चखो वनीला।
ढब अनीति का सरल, नीति का पथ-पथरीला।
ऊँची छत छल-छद्म की, श्रम की टूटी छान।
लुटा-पिटा सा शाह है, बढ़ी चोर की शान।
बढ़ी चोर की शान, समय का समझ इशारा।
रावण के पग चाट, राम से काट किनारा।
लक्ष्मण-रेखा लाँघ, सीख चालें मारीची।
माटी हैं सत्कर्म, कुकर्मों की गति ऊँची।
लल्लो-चप्पो जो करे, वो साहब का खास
पूजा जिसने कर्म को, रहा दास का दास
रहा दास का दास, रखो आले में अक्कल
सारे निर्णय करो देख साहब की शक्कल
बैंगन के गुण छोड़ शाह की माला जप्पो
त्याग कर्म का मोह, करो बस लल्लो-चप्पो।
६ अप्रैल २०१५
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