अनुभूति में
कृष्ण नंदन मौर्य की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
अंधे न्यायालय को
कटा कटा गाँव
कस्तूरी की गंध
जादू वाली छड़ी
जिस आखर से खुले
गीतों में-
अब मशीने बोलती हैं
क्या उड़ने की आशा
नदिया के उस पार
मन को भाता है
रहे सफर में
संकलन में-
विजय पर्व-
राम को तो आज भी वनवास है
नया साल-
नये वरस जी
शुभ दीपावली-
उजियारे की बात
जग का मेला-
तितली
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कटा–कटा
गाँव
सीख लिये हैं जबसे
शहरों के दाँव
भीतर से कटा–कटा
रहता है गाँव
बारूदी गंधों में
सने हुये पोखर
बाँच रहे हैं मचान
जहर–बुझे आखर
षडयंत्रों में शामिल
हो रहे अलाव
सुतली–बम बाँध
ताव झाड़ रहा सत्ते
कट्टों की खेप लिये
टहल रहा फत्ते
चौपालों में
घायल फिरता सद्भाव
रास नहीं आती अब
मेहनत की रिमझिम
ढूँढें सब एक अदद
सपनों का सिमसिम
लालच की धार
बही संतोखी–नाव
फैलीं पगडंडियाँ
सुभाव हुये सँकरे
उथले हो गये
ताल नातों के गहरे
धसक रहा माटी का
जड़ों से जुड़ाव
३१ मार्च २०१४
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