अनुभूति में
कृष्ण नंदन मौर्य की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
अंधे न्यायालय को
कटा कटा गाँव
कस्तूरी की गंध
जादू वाली छड़ी
जिस आखर से खुले
गीतों में-
अब मशीने बोलती हैं
क्या उड़ने की आशा
नदिया के उस पार
मन को भाता है
रहे सफर में
संकलन में-
विजय पर्व-
राम को तो आज भी वनवास है
नया साल-
नये वरस जी
शुभ दीपावली-
उजियारे की बात
जग का मेला-
तितली
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क्या उड़ने की
आशा
क्या उड़ने की
आशा
पंछी !
नयन–निलय में
नील गगन
है
तरु की फुनगी पर यह मन है
किन्तु कटे पर तो फिर कैसी
उपवन की प्रत्याशा
पंछी !
तोड़ क्षितिज
की परिभाषाएँ
पा लूँ इस नभ की
सीमाएँ
किन्तु बँधे पग तो फिर कैसी
बढ़ चलने की आशा
पंछी !
स्वर्ण–दीप्ति के छल के
पीछे
भाग रहा तू
आँखें मींचे
स्वर्ण – कटोरों में
चुग्गा
चुगकर भी कैसे प्यासा
पंछी !
बँधे हुए निश्वास तुम्हारे
मन पर छल का पाश घना रे
कैद आत्मा धन में तो फिर
क्या स्व– की परिभाषा
पंछी !
२९ अप्रैल २०१३
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