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ये पौधे पेड़
बनेंगे
ये पौधे पेड़ बनेंगे- यकीन बाकी है,
जड़ों के वास्ते काफी जमीन बाकी है।
सवार हमने बदल डाले सैकड़ों लेकिन,
हमारी पीठ पे सदियों की ज़ीन बाकी है।
पिटारे छोड़कर ये साँप जा नहीं सकते,
अभी सपेरों के हाथ में बीन बाकी है।
ज़ुबान उसकी पुराने मुशायरों जैसी,
वही मिठास वही काफ़ शीन बाकी है।
हमें हटाने दो मलबा, हमें पता है ये,
ढहे मकान के अंदर मकीन बाकी है।
गले लगाने की दुश्मन को दोस्तों की तरह,
हमारे घर में रवायत हसीन बाकी है।
बदल ही डालेगी चेहरा शहर
का चढ़ने पर,
फटी कमीजों में जो आस्तीन बाक़ी है।
२३ जुलाई २०१२ |