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अनुभूति में गणेश गंभीर की रचनाएँ

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ये पौधे पेड़ बनेंगे
लगाकर आग जंगल में

गीतों में-
इच्छा
नदी

 

धर्म पुराना

पुल के नीचे नदी
नदी के ऊपर है पुल
यह जीवन का
स्थितियों से रिश्ता है कुल।

चलते पाँवों को राहें मिल ही जाती हैं
चाहे समतल-सरल सड़क हो
या उबड़-खाबड़ पगडण्डी
भूख आग पैदा करती है
बस्ती जले या कोयला कण्डी।

रोटी आटे से बनती है
नहीं ज़रूरी बटुई कलछुल।

देह नहीं छोड़ेगी अपना धर्म पुराना
थक कर सोना सोकर उठना
इसी तरह से आना-जाना
लोग आदतन जारी रखेंगे
उस पर आरोप लगाना

कभी मुदित हो जायेगी वह
कभी-कभी होगी शोकाकुल।

३ अगस्त २०१५

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