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लगाकर आग जंगल में

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इच्छा
नदी

  ठंडी ठंडी फुहार चेहरे पर

ठंडी ठंडी फुहार चेहरे पर
आ गयी है बहार चेहरे पर

एक संदेह सर उठाता है,
रंग आये हजार चेहरे पर !

झुर्रिया चादरें हैं फूलो की,
बन गयी इक मजार चेहरे पर

लाश पाई गयी सुधारों की,
दाग थे बेशुमार चेहरे पर!

आज गम्भीर लिख ही डालेगा,
अपने सारे विचार चेहरे पर !

२३ जुलाई २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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