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अनुभूति में गणेश गंभीर की रचनाएँ

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अजब आदमी
धर्म पुराना
पेड़ पीपल का
समय इन दिनों

अंजुमन में-
चाँदनी में लेटना
ठंडी ठंडी फुहार
जीवन एक अँधेरा कमरा
ये पौधे पेड़ बनेंगे
लगाकर आग जंगल में

गीतों में-
इच्छा
नदी

  लगाकर आग जंगल में

लगाकर आग जंगल में हवाएँ सोचती होंगी,
धुएँ से, गंध से बोझिल दिशाएँ सोचती होंगी।

गिराकर कुछ मकानों को, बुझाकर प्यास खेतों की,
अभी क्या काम बाकी है घटाएँ सोचती होंगी।

अहिल्या बिन बने क्या मुक्ति संभव ही नहीं होती,
कई निर्दोष, पर जीवित शिलाएँ सोचती होंगी।

बहाकर दीप पूजा का कहाँ ले जाएँगी लहरें,
कभी तो मेरे बारे में- व्यथाएँ सोचती होंगी।

समय की बाढ़ ने तोड़ा न जाने कितने बाँधों को,
न जाने किसकी बारी है- प्रथाएँ सोचती होंगी।

सयानी लड़कियों का इस तरह हँसना नहीं अच्छा,
रसोई में बनाती चाय माएँ सोचती होंगी।

२३ जुलाई २०१२

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