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अनुभूति में गणेश गंभीर की रचनाएँ

नयी रचनाओं में-
अजब आदमी
धर्म पुराना
पेड़ पीपल का
समय इन दिनों

अंजुमन में-
चाँदनी में लेटना
ठंडी ठंडी फुहार
जीवन एक अँधेरा कमरा
ये पौधे पेड़ बनेंगे
लगाकर आग जंगल में

गीतों में-
इच्छा
नदी

  जीवन एक अँधेरा कमरा

जीवन एक अँधेरा कमरा, कोई रोशनदान नहीं,
इस तहखाने में जी पाना मुश्किल है आसान नहीं।

मेरे उसके संबंधों का दुनिया में अनुमान नहीं,
दुख मेरा जुड़वा भाई है, दो दिन का मेहमान नहीं।

मेरी स्थितियाँ मेरी हैं- शाप नहीं वरदान नहीं,
नीलकंठ कहलाता कैसे यदि करता विषपान नहीं।

लोगो मेरे अंदर झाँको- ऊपर-ऊपर मत देखो,
चेहरा तो केवल चेहरा है- यह पूरी पहचान नहीं।

त्रेता हो चाहे कलियुग हो- आदर्शो ने कष्ट सहा,
रावण रथी आज भी लेकिन राम हुए रथवान नहीं।

रूप वही है, रंग वही है फिर भी कुछ तो बदला है,
आँखों में अनुराग नहीं है, ओठों पर मुस्कान नहीं।

इच्छाओं का आना-जाना, लेन-देन सौदेबाजी,
भीड़ भरा चौराहा मन है, पूजा का स्थान नहीं।

लहरों से लड़ता रहता हूँ, मछुवारे की नाव बना,
बाधाओं के महासिंधु में मैं डूबा जलयान नहीं।

२३ जुलाई २०१२

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