इच्छा
वर्जित फल खाने
की इच्छा
घने वनों तक ले आई
शान्त महानद
क्रुद्ध लहर का कारण
सीमा तोड़ गया
अपने पीछे केवल
आँसू भरी कथाएँ
छोड़ गया
सागर हथियाने की इच्छा
रेत कणों तक ले आई
निर्वासन का शाप
झेलते
कितने ही युग बीत गये
है अभियोग पुराना
लेकिन
अभियोजक हैं नये नये
हर्षद पल पाने की इच्छा
दुखद क्षणों तक ले आई
गई देह की आग
बची मिट्टी
पथराकर ठोस हुई
समय ज़िन्दगी यूँ धुनता है
जैसे धुनिया
धुने रुई
भीष्म कहे जाने की इच्छा
कठिन प्रणों तक ले आई
२५ अगस्त २००८ |