अनुभूति में
गणेश गंभीर की रचनाएँ
नयी रचनाओं में-
अजब आदमी
धर्म पुराना
पेड़ पीपल का
समय इन दिनों
अंजुमन में-
चाँदनी में लेटना
ठंडी ठंडी फुहार
जीवन एक अँधेरा कमरा
ये पौधे पेड़ बनेंगे
लगाकर आग जंगल में
गीतों में-
इच्छा
नदी
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समय इन
दिनों
जब चाहे इतिहास बदल दे
जब चाहे भूगोल
समय इन दिनों
बोल रहा है काफी ऊँचे बोल।
मिट्टी जाँची गयी
अस्थियों का भी हुआ परीक्षण
शब्दों की छेनी-हथौड़िया
करती सच का तक्षण
झूठ रोज तैयार कर रहा है
कृतियाँ अनमोल।
कमरे जितने हैं अतीत के
भरे उजालों से
बन्द कर दिया गया उन्हें
तर्कों के तालों से
सोच रहा हूँ आगे बढ़कर
मैं दूँ इनको खोल।
आग-हवा-पानी
मिलकर यह दुनिया रचते हैं
इस धरती के आसमान से
गहरे रिश्ते हैं
डर बन कर फिर वर्तमान क्यों
रहा आँख में डोल।
३ अगस्त २०१५ |