अनुभूति में
दिवाकर वर्मा
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
कलफ लगे खादी के कुरते
कहाँ गए दिन
गंगाराम
दिन
सूप खटकाती रही
गीतों में-
आदमी बौना हुआ है
चिठिया बाँच रहा चंदरमा
चेहरे से सिद्धार्थ
नदी नाव संजोग
नागफनियाँ मुस्कान में
पटरी से गाड़ी उतरी
फुनगी पर बैठा हीरामन
मैं वही साखी
राम जी मालिक
हुमकती पवन
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रामजी मालिक
हो रहे
शब्दार्थ बेमानी
प्रहलियों के रामजी मालिक।
उग रहे जलकुंभियों के जूथ
ढँक लिया शैवाल ने सरवर,
मकड़ियों ने बुन लिये जाले
फँस रहे निर्दोष क्षर-अक्षर,
सड़ रहा है
ताल का पानी
मछलियों के रामजी मालिक।
देह फूलों की हुई घायल
वक्त के नाखून तीखे हैं,
इस सदी का है करिश्मा यह
बाग में निष्प्राण चीखें हैं,
हो रहा
बदरंग-रंग धानी
तितलियों के रामजी मालिक।
क्षितिज पर तूफान के लक्षण
गगन ने आँखें तरेरी हैं,
रौंदने भू पर रुपा जीवन
छेड़ता वह युद्धभेरी है,
बिजलियों ने
जंग है ठानी
बदलियों के रामजी मालिक।
२८ जून २०१० |