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अनुभूति में दिवाकर वर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कलफ लगे खादी के कुरते
कहाँ गए दिन
गंगाराम
दिन
सूप खटकाती रही
 

गीतों में-
आदमी बौना हुआ है
चिठिया बाँच रहा चंदरमा
चेहरे से सिद्धार्थ
नदी नाव संजोग
नागफनियाँ मुस्कान में
पटरी से गाड़ी उतरी
फुनगी पर बैठा हीरामन
मैं वही साखी

राम जी मालिक
हुमकती पवन

 

कहाँ गए दिन

कहाँ गए दिन
वे सीले, छप्पर-छानी के !

रिसती छत
नीचे धरती पर
धरे भगोने,
टप-टप टपके
कच्चे घर में
बचे न कोने,
कहाँ गए दिन
वे गीले, झम-झम पानी के।

रात-रात भर
जाग-जाग
खटिया सरकाना,
छिन आँगन में
छिन में फिर
मढ़हे में आना,
कहाँ गए दिन
वे पानी की मनमानी के !

साग-पात के लाले
कैसे बने रसोई,
चूल्हा बुझा
और दीखे खाली बटलोई,
कहाँ गए दिन
वे भर मुट्ठी गुड़धानी के !

२२ अगस्त २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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