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अनुभूति में दिवाकर वर्मा की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कलफ लगे खादी के कुरते
कहाँ गए दिन
गंगाराम
दिन
सूप खटकाती रही
 

गीतों में-
आदमी बौना हुआ है
चिठिया बाँच रहा चंदरमा
चेहरे से सिद्धार्थ
नदी नाव संजोग
नागफनियाँ मुस्कान में
पटरी से गाड़ी उतरी
फुनगी पर बैठा हीरामन
मैं वही साखी

राम जी मालिक
हुमकती पवन

  फुनगी पर बैठा हीरामन

फुनगी पर
बैठा हीरामन
सुना रहा दुखड़ा!

नई कहानी का मौसम अब किस्से कौन कहे,
चौपालों पर हुंकारे वाले भी नहीं रहे,
किस्‍सागोई
वाला खेमा
तो कब का उखड़ा।

ठंडी-रातें गरम-रजाई घुसकर सब बैठें,
रोज नए किस्सें की जिद पर बबुआ जी ऐंठें,
परीकथा
वे दिन, वे रातें
अब न बचा टुकड़ा।

गिर्द अलावों के रचते जाने कितने किस्से,
कथरी ओढ़े पड़े गुमशुदा वे जीवन-हिस्‍से,
यह किस्सा
बन गया गीत का
दर्द भरा मुखड़ा।


२८ जून २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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