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गंगाराम
चित्रकूटि
न दूध रोटी
न भजता सीताराम!
भिनसारे में
राम नहीं
अब रटता गंगाराम!
राम न रटता
गाली बकता
गढ़ी नयी भाषा,
बोली-बानी बदली
रच ली नूतन परिभाषा,
संबोधन में
‘हाय-हलो’
ही कहता सुबहो-शाम!
भूला तोता भजन
और
मैना भूली गाना,
भरी दुपहरी निंदा-
स्तुति, चलता बतियाना,
काम-धाम के
नाम कहे
बस बोलो ‘राधे-श्याम’!
हरी मिर्च का
स्वाद निराला
याद नहीं आये,
पाँच सितारा चुग्गा-दाना
सुग्गे को भाये,
सुआपटे अब
निषि-दिन जपता
बस पिज्जे का नाम!
२२ अगस्त २०११
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