नागफनियाँ
मुस्कान में औपचारिक बन
गए प्यार के रिश्ते।
नागफनियाँ
उग रही मुस्कान में,
नाचते हैं
प्रेत ज्यों श्मशान में,
मौन तीखा
बँध गए मनुहार के बस्ते।
मूल से उखड़े
नहीं कोई चुभन,
स्वयं से झग़ड़े
नहीं कोई जलन,
बन गए
नासूर ही, अब घाव से रिसते।
देह पर
पहने वसन हैं पीर के,
किस तरह
मन को दिखाएँ चीर के,
बोले मीठे भी
ह्रदय में फाँस से चुभते।
२६ जनवरी २००९ |