अनुभूति में
दिवाकर वर्मा
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
कलफ लगे खादी के कुरते
कहाँ गए दिन
गंगाराम
दिन
सूप खटकाती रही
गीतों में-
आदमी बौना हुआ है
चिठिया बाँच रहा चंदरमा
चेहरे से सिद्धार्थ
नदी नाव संजोग
नागफनियाँ मुस्कान में
पटरी से गाड़ी उतरी
फुनगी पर बैठा हीरामन
मैं वही साखी
राम जी मालिक
हुमकती पवन
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नदी नाव संजोग
नदी नाव
संजोग भेंटना
तुम से आज हुआ।
पान-फूल
अँजुरि में लेकर मन में वृंदावन,
आँख जुड़ाए गैल तकें गलियारे
घर आँगन,
बाट पाहुने की जोहे ज्यों
गंगाराम सुआ।
अक्सर लगते
सूनसान चौखट-देहरी तुम बिन,
गहरे सन्नाटे में डूबे थे मेरे
पल-छिन,
तुम आए जैसे अम्बर से
झर-झर झरी दुआ।
पोर-पोर
फगुनाई महकी रस-कचनार खिले,
महुआ-सी गमकी पुरवाई तुम जो
आज मिले,
दर्पण ने दर्पण को जैसे
सहसा आज छुआ।
२८ जून २०१० |