पटरी से गाड़ी
उतरी पटरी से गाड़ी
उतरी
कुछ गहरी साज़िश है।
चालक-परिचालक ने शायद झपकी ले
ली थी
या उत्कोची कंचन-मृग ने बाज़ी खेली थी
इन्द्र-वृत्ति के प्रति यह
जनता की साज़िश है।
सपने रहे दिखाते, भू पर
स्वर्ग उतर आया
भूखे होरी धनिया को यह फ्रॉड नहीं भाया
अंतर भदरंगा, ऊपर
चमकीली पॉलिश है।
अपने प्रिय की रबड़ी इनको
किंचित नहीं जँचे
छाछ विदेशी पैकिंग, उस पर राधा ख़ूब नचे
देशी छोड़ विदेशी
उनको लगती ख़ालिस है।
बाज़ नोंचते रहे पंख, नभ में
हर पाखी के
पर वे चलते रहे सहारे, बस बैसाखी के
भले गोधरा या जम्मू
आतिश ही आतिश है।
२६ जनवरी २००९ |