अनुभूति में
दिवाकर वर्मा
की रचनाएँ-
नए गीतों में-
कलफ लगे खादी के कुरते
कहाँ गए दिन
गंगाराम
दिन
सूप खटकाती रही
गीतों में-
आदमी बौना हुआ है
चिठिया बाँच रहा चंदरमा
चेहरे से सिद्धार्थ
नदी नाव संजोग
नागफनियाँ मुस्कान में
पटरी से गाड़ी उतरी
फुनगी पर बैठा हीरामन
मैं वही साखी
राम जी मालिक
हुमकती पवन
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चिठिया बाँच
रहा चंदरमा
चिठिया
बाँच रहा चंदरमा
शरद जुन्हैया की।
जोग लिखि श्रीपत्री घर में
कुशल-क्षेम भारी,
आँगन के बूढ़े पीपल पर
चली आज आरी,
रामजनी कर रहीं चिरौरी
किशन-कन्हैया की।
चौक-सातिया, बरहा-बाँगन
हो गये असगुनिया,
नहियर-सासुर खुसर-फुसर है
आशंकित मुनियाँ,
बाप-मताई जात कर रहे
देवी मैया की।
गली-मोड़ खुल गयीं कलारीं,
झूमें गलियारे,
ब्याज-त्याज में बिके खेत
हल बैठे मन मारे,
कोरट सुरसा बनी
आस अब राम-रमैया की।
पिअराये भुट्टे, इतराये
मकई के दाने .. ..
हाट-बाट में लुटी फसल,
कुछ मण्डी कुछ थाने,
साँसें उखडीं उखड़ गयी हैं
कील पन्हैया की।
शेष सभी कुशलात
देश-परदेश दीन-दुनिया,
लिये आँकड़ों की मशाल
यह बता रहे गुनिया,
जगमग रोज दिवाली
जिनकी गली अथैया की।
२८ जून २०१० |