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दो छोटी कविताएँ
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दो छोटी कविताएँ

हिमकण

हिमकण गिर रहे हैं आकाश से।
सफ़ेद हो जाती है सड़क।
सूर्य, तुम आज कहाँ खो गये?
देखो तुम, यह बर्फ़ का नाटक!

अँधेरा

जब गगन में अँधेरा है
तब मेरा दिल उदास है
जैसे कि मेरी देवी को
रावण अपने द्वीप पर ले।

२३ नवंबर २००९

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