अनुभूति में
ज़्देन्येक वाग्नेर
की रचनाएँ-
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में-
अकेला दिल
आवाज़
घायल हुस्न की परझाईं
नज़दीक या दूरी में
यात्री
सूरज और चंद्र
छंदमुक्त
में-
ग्रहण
दो
छोटी कविताएँ
मुरझाए
हुए फूल
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नज़दीक या दूरी
में
जो नज़दीक होता है
वह दूर हो सकता है
जो दूर ही होता है
वह पास हो सकता है
स्वप्निल दिल हृदय से
रोज़ मिला करता है
परन्तु चार आँखें
कुछ नहीं देखती हैं
दोनों दिल सपनों में
सफ़र कर रहे हैं
साथ साथ वे आसमान में
हर रात को उड़ते हैं
आता है सवेरा
मरता है अंधेरा
जागता है नया दिल
उदास हैं दोनों दिल
बड़ी तो दूरी में
प्यारा दिल रहता है
और मैं रोज़ पूछता हूँ
कि आज कहाँ है तू
२७ दिसंबर २०१० |