अनुभूति में
ज़्देन्येक वाग्नेर
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हुए फूल
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मुरझाए हुए फूल
जब सब फूल मुरझाए हुए हैं
और बाग़ में ठंडी ही पड़ती है
दीपक का प्रकाश तब ग़ायब है।
कमरे में अंधेरा रहता है।
बाद कुहरा आकाश में बढ़ता है।
वीणा की आवाज़ खो गयी है।
कल मेरे फूल तुम्हें पसंद थे।
आज गुल का काँटा ही बाक़ी है।
२३ नवंबर २००९ |