अनुभूति में
मानोशी चैटर्जी की रचनाएँ-
नए गीतों में-
पतझड़
की पगलाई धूप
बदले नयन
शीत का आँचल
शेष समय
अंजुमन में—
अपनी
निशानी दे गया
कोई तो होता
लाख चाहें
ये जहाँ मेरा नहीं है
हज़ार किस्से सुना रहे हो
गीतों में—
होली
गीत
कविताओं में—
आज कुछ
माँगती हूँ प्रिय
एक उड़ता ख़याल–दो रचनाएँ
कुछ जीर्ण क्षण
चलो
चुनना
ताकत
पुरानी
बातें
मेरा साया
लौ और परवाना
स्वीकृति
संकलन में—
दिये
जलाओ- फिर दिवाली है
होली है-
गुजरता है वसंत
फागुन के रंग-
मौसमी हाइकु |
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ताक़त
हर ताक़त के पीछे से
झाँकती है कोई कमज़ोरी
और जब ताक़त सरसरा कर
ज़मीन पर लोटने को बेताब हो
तो वही कमज़ोरी उठाती है
याद दिलाती है कि उसकी डोर को
कमज़ोरी ने ही बाँधा है
मुस्कराहट भी आज है
उन ढुलकते मोतियों की बदौलत
काग़ज़ी फूल जो महक रहे हैं
किसी काँटेदार शाख़ की दुआ से
कि हर बवंडर की गहराई में
छुपा होता है एक शांत स्थिर आकाश।
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