अनुभूति में
मानोशी चैटर्जी की रचनाएँ-
नए गीतों में-
पतझड़
की पगलाई धूप
बदले नयन
शीत का आँचल
शेष समय
अंजुमन में—
अपनी
निशानी दे गया
कोई तो होता
लाख चाहें
ये जहाँ मेरा नहीं है
हज़ार किस्से सुना रहे हो
गीतों में—
होली
गीत
कविताओं में—
आज कुछ
माँगती हूँ प्रिय
एक उड़ता ख़याल–दो रचनाएँ
कुछ जीर्ण क्षण
चलो
चुनना
ताकत
पुरानी
बातें
मेरा साया
लौ और परवाना
स्वीकृति
संकलन में—
दिये
जलाओ- फिर दिवाली है
होली है-
गुजरता है वसंत
फागुन के रंग-
मौसमी हाइकु |
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मेरा साया
बहुत डरा हुआ था
मेरा साया
जब चली थी मैं घर से
रास्ते में न जाने कितने
अनजान लोगों की भीड़ में
खो गया कहीं वो
आज ढूँढ रहा
मेरा साया
मुझे गली गली
मगर आज
अपने साये से मुँह फेर
निकल चुकी मैं दूर कहीं
मेरा वो पुराना साथी
खो चुका भीड़ में
पूरी तरह।
अकेले अकेली राहों पर
चलते चलते देर तक
जब थक चुकी मैं
तब अचानक
मुझे मिला कहीं वो
मेरा भटकता हुआ साया
मेरा हमदम
पर आज उन फिरी नज़रों को
फिरा न सकी मैं
जो गिरी थी नज़रें
उन्हें उठा न सकी मैं
मेरे साये ने पहचाना नहीं मुझे
कि इतनी दूर जा चुकी मैं
अपनी पहचान बनाने की कोशिश में। |