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होली है!!

 

गुज़रता है वसंत
(चार क्षणिकाएँ)


१.
गुज़रता है बसंत
बर्फ़ की पगडंडियों के बीच
मंज़िल तलाशने
अपनी
गुनगुनी रातों तक


२.
सोन रंग
भर पिचकारी
भोर बाला संग
खेले सूरज
होली


३.
महुआ की गंध
झूमे गगन,
गली-गली
पलाश का आलिंगन,
सरसों मचल कर
चूमे धरा,
प्रीतोत्सव मनाये
बसंत।

मानोशी चैटर्जी
२१ मार्च २०११

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