शेष समय
शेष समय इतना करना
सपनों
का आकाश बड़ा था,
आँखों मुक्ताहार जड़ा था,
चुन - चुन मोती बड़े जतन से
संग-संग हाथों
महल गढ़ा था,
स्वप्न नहीं अब एक कहानी
बन मेरी आँखें झरना
एक
स्वप्न था, अंक तुम्हारे
अपना सर रख कर सो जाऊँ,
माँग सितारे,
माथे सूरज
पहन जगत में मैं इतराऊँ,
और नहीं तो उस अंतिम क्षण
अपने अश्रु माँग भरना
जितना
हम संग राह चले हैं,
सुख-दुख, सपने संग पले हैं,
बाधाओं,
झंझावातों से
हाथ पकड़ कर हम निकले हैं,
अब एकल पथ जाना मुझको
तुम ही मेरा भय हरना
२६ मार्च २०१२