अनुभूति में
मानोशी चैटर्जी की रचनाएँ-
नए गीतों में-
पतझड़
की पगलाई धूप
बदले नयन
शीत का आँचल
शेष समय
अंजुमन में—
अपनी
निशानी दे गया
कोई तो होता
लाख चाहें
ये जहाँ मेरा नहीं है
हज़ार किस्से सुना रहे हो
गीतों में—
होली
गीत
कविताओं में—
आज कुछ
माँगती हूँ प्रिय
एक उड़ता ख़याल–दो रचनाएँ
कुछ जीर्ण क्षण
चलो
चुनना
ताकत
पुरानी
बातें
मेरा साया
लौ और परवाना
स्वीकृति
संकलन में—
दिये
जलाओ- फिर दिवाली है
होली है-
गुजरता है वसंत
फागुन के रंग-
मौसमी हाइकु |
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लाख चाहें
लाख चाहें फिर भी मिलता सब नहीं
है
जुस्तजू पर आदमी को कब नहीं है
हम अभी तक नाते रिश्तों में बंधे हैं
वो नहीं मिलते कि अब मतलब नहीं है
ढूँढ़ता है दर बदर क्यों
मारा मारा
प्यार ही तो ज़िन्दगी में सब नहीं है
हमने अपने राज़ क्या बताएँ उनको
दोस्ती जो थी कभी वो अब नहीं है
तेरे जैसे इस जहाँ में 'दोस्त' कितने
जो कहे उनका कोई मज़हब नहीं है
२५ अगस्त २००८ |