अनुभूति में
मानोशी चैटर्जी की रचनाएँ-
नए गीतों में-
पतझड़
की पगलाई धूप
बदले नयन
शीत का आँचल
शेष समय
अंजुमन में—
अपनी
निशानी दे गया
कोई तो होता
लाख चाहें
ये जहाँ मेरा नहीं है
हज़ार किस्से सुना रहे हो
गीतों में—
होली
गीत
कविताओं में—
आज कुछ
माँगती हूँ प्रिय
एक उड़ता ख़याल–दो रचनाएँ
कुछ जीर्ण क्षण
चलो
चुनना
ताकत
पुरानी
बातें
मेरा साया
लौ और परवाना
स्वीकृति
संकलन में—
दिये
जलाओ- फिर दिवाली है
होली है-
गुजरता है वसंत
फागुन के रंग-
मौसमी हाइकु |
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पतझड़
की पगलाई धूप
भोर भई
जो आँखें मींचे,
तकिये को सिरहाने खींचे,
लोट गई
इक बार पीठ पर
ले लम्बी जम्हाई धूप,
अनमन सी अलसाई धूप
पोंछ रात
का बिखरा काजल,
सूरज नीचे दबा था आँचल,
खींच अलग हो
दबे पैर से
देह आँचल सरकाई धूप,
यौवन ज्यों सुलगाई धूप
फुदक-फुदक
खेले आँगन भर,
खाने-खाने एक पाँव पर,
पत्ती-पत्ती
आँख मिचौली,
बचपन सी बौराई धूप
खिल-खिल खिलती आई धूप।
२६ मार्च २०१२
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