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खेले सरसों
वासंती हवा संग
धरा लजाए
धूप थिरके
पीली चूनर ओढ़
फागुन संग
बरसा प्रेम
होली के रंग संग
भेद मिटाए
पी संग खेले
होरी जी भर गोरी
लाज भुलाए
डारा पिया ने
ऐसा रंग प्रेम का
छूटे न अंग
ए री कोयल
अब मत पुकार
निष्ठुर पी को
बिछा पलाश
फागुन बिखेरती
रंग गोधूली
-मानोशी चैटर्जी |
प्रह्लाद बचा
प्रतिशोधी अग्नि में
होलिका जली।
टीस जगाते
बिरहन मन में
टेसू के फूल।
सांझ सकारे
सूरज खेले फाग
आसमान में।
--भास्कर तैलंग |