अनुभूति में
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आज
एक अदद इंतज़ार
एक था चंचल
एक ख्वाब की कब्रगाह
कौन हूँ मैं
झोंका जो आया अतीत की खिड़की से
नव वर्ष में
भूलना
मंगलसूत्र
वर्ष दो हजार दस
वो बत्ती वो रातें
संवाद
सच
हादसे– (मुंबई और मंगलौर के बीच मन) |
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उत्सव
किसी एक दिन की दीवाली
एक होली
एक दशहरा
मैं क्यों जोड़ू अपने सपनों को किसी एक दिन से
एक दिन का फादर्स डे
एक दिन का मदर्स डे
एक दिन की शादी की सालगिरह
माँगे हुए उत्सव
या कैलेंडर के मुताबिक आते उत्सव
सरकारी छुट्टी की कमी भर सकते हैं
खाली पड़े पारिवारिक तकियों में रूई भी
पर अंतस भी भरे उनसे जरूरी नहीं
अपना उत्सव खुद बनना
अपनी होली खुद
अपनी पिचकारी
अपनी रंगोली भी
किसी सूखे पत्ते पर
दो बूंद पानी की डाल
किसी पेड़ की डाल से चिपक कर संवाद
और किसी खाली मन में सपनों के तारे भर कर
बुनी चारपाई पर बैठ
चांद को देखा जो मैनें
तो उत्सव कहीं दूर से उड़ कर
गोद में आ बैठे
मैं जानती हूं
ये उत्सव तब तक रहेंगे
जब तक मेरे मन में रहेगा
सच
७ मई २०१२ |