अनुभूति में
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उत्सव
औरत ???
कल और आज के बीच
हसरतें
छंदमुक्त में-
आज
एक अदद इंतज़ार
एक था चंचल
एक ख्वाब की कब्रगाह
कौन हूँ मैं
झोंका जो आया अतीत की खिड़की से
नव वर्ष में
भूलना
मंगलसूत्र
वर्ष दो हजार दस
वो बत्ती वो रातें
संवाद
सच
हादसे– (मुंबई और मंगलौर के बीच मन) |
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आज
सूरज के गोले बनाकर
चाँदी के फंदे डाल दिए
रात भर में बना डाला ऐसा स्वेटर
कि सुबह हुई
तो सूरज शरमा गया
गमों को हीरे के गिलास में डाला
एक साँस में गटका
साँस ठंडी हुई
फिर सामान्य
हिम्मत है अंधेरे की
कि रास्ते के दीए बुझाए
हम तो दीए हथेली पे लिए चले हैं
ऊर्जा मन में है
दीए बहाना हैं
अहा
इससे बेहतर तस्वीर क्या होगी जिंदगी की
पूछो तो इस नन्हे शावक से
यहाँ मुस्कुराहटें खुद चली आती हैं
खुशी का सबक लेने
१७ जनवरी २०११ |