औरत
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सुबह से शाम तक
तिनके जोड़ती हूँ मैं
कि घर बना सकूँ
खून से लथपथ
अनकहे अपमान से भारी
बहुत से तिनके
तिनकों की भाषा कोई नहीं
सरहद भी नहीं
पर महीन रिश्तों की बारीक रेखा
तिनके मन के हैं
तिनके तन के हैं
तिनके अनमने हैं
तिनके अपने हैं
तिनके समझते हैं सब
फरेब की पहेलियों की कहानी जानते हैं तिनके
पर तिनके चुप रहते हैं
७ मई २०१२ |