|
सच
कचनार की डाल पर
इसी मौसम में तो खिलते थे फूल
उस रंग का नाम किताब में कहीं लिखा नहीं था
उस डाल पर एक झूला था
उस झूले में सपने थे
आसमान को छूने के
उस झूले में आस थी
किसी प्रेमी के आने की
उस झूले में प्यार था
आंचल में समाने का
पर उस झूले में सच तो था नहीं
झूले ने नहीं बताया
लड़की के सपने नहीं होते
नहीं होने चाहिए
प्रेम उसे नहीं मिलता
नहीं मिलना चाहिए
किताबी है यह
बेमानी भी
झूले ने कहाँ बताया
जिंदगी अपमान होगी, प्रताड़ना भी
पति के हाथों, बेटों के हाथों
जहाँ छूटी अम्मा की देहरी
जामुन की तरह पिस जाएगी
ये फूलों की फ्राक
आइसक्रीम खाने की तमन्ना
मचलने के मजे
कोयल की कूक
तब बचेगी सिर्फ
मन की हूक
और याद आएंगे
कचनार के झूले
किसी फिल्मी कहानी की तरह
७ जून २०१० |