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यही तो
है प्यार
जो प्यार
पहाडियों पर पनपा
अल्हड, चंचल, आकुल
घाटियों से मिलने दौडा
जल प्रपातों ने मीठे स्वर में गाया
यह अकुलाहट
यह अल्हडपन
यही तो है प्यार।
मैदानों में उतरकर
वही फैल गया
मंद, गंभीर, प्रगाढ
स्नेह लिये चला
साँझ के धुँधलके में
लौटते मछुआरों ने तान दिया
यह गांभीर्य
यह धैर्य
यही तो है प्यार।
जब सागर के पास
वही आ पहुँचा
झाऊ के झुरमुटों से झाँक
स्निग्ध चाँदनी ने कहा
यह समर्पण
यह चेतना के महाशून्य में विलयन
यही तो है प्यार।
१ अप्रैल २००४
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