याचना
मैंने कहा
थम भी जाओ समीर
पीपल की फुनगियों पर
एक उसाँस भर लेने दो
रोम-रोम में फैल जाने दो
सिहरन।
मैंने कहा
रूक भी जाओ रवि
समुद्र की उद्वेलित लहरों पर
काँपती छाया उकेर लेनें दो
नस-नस में पसर जाने दो
स्फुरन।
मैंने कहा
ठहर भी जाओ समय
निस्सिम के कगार पर
एक अचल विस्मित क्षण जी लेने दो
इस विराट को
कन-कन में व्यापने दो
अनुक्षण।
१ अप्रैल २००४
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