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अनुभूति में शशि रंजन कुमार की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अभिलाषा
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प्रेम : चिरंतन
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मृत्यु
याचना
याद
यही तो है प्यार
साँझ
सृजन

 

अभिलाषा

मुझे
उतना भर
झर जाने दो
जितना पावस की फुहार से
झरती हैं फूलों की पंखुडियाँ
मुझे
उतना भर दो
तन जाने दो
जितना शर-दर्प से
तनती है पौरुष की प्रत्यंचा
मुझे
उतना भर
जल जाने दो
जितना मेरी ही साँसों से
जलती है मेरे जीवन की समिधा।

१ अप्रैल २००४

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