बिछुडने
से पहले
गर्मी की चिलचिलाती
सुनसान दुपहरी में
पलाश के फूलों पर
तुमने कहा-
यह महकता स्पर्श ले लो
यह अनछुई महक ले लो
मैंने कहा- नहीं नहीं
सर्दी की कंपकंपाती
निस्तब्ध रात में
तुमने कहा-
यह तपते होंठ ले लो
यह अधरों का कंपन ले लो
मैंने कहा- नहीं नहीं
वर्षा की कडकडाती
गरजती शाम में
लहरों पर चमकती कौंध के बीच
तुमने कहा-
यह उफनता एहसास ले लो
यह किरनों से धुली देह ले लो
मैंने कहा- नहीं नहीं
अपनी स्मृति के मीठे कोने में
बस एक किरन की नोक भर
जगह मुझे दे दो।
१ अप्रैल २००४
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