छंदमुक्त में- अभिलाषा असाढ की बदली पार : बार बार प्रेम : चिरंतन बिछुडने से पहले मृत्यु याचना याद यही तो है प्यार साँझ सृजन
सृजन मैं हर शब्द के साथ पंखुडी-पंखुडी झरता हूँ कनी-कनी मिटता हूँ तिल-तिल मरता हूँ हर कविता के साथ कली-कली खिलता हूँ पोर-पोर विकसता हूँ नया रूप, नया रंग नया साज, नया छंद दिव्य आलोक से स्पंदित नई चेतना, नए प्राण पाता हूँ। १ अप्रैल २००४
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