प्रेम :
चिरंतन
जो राग रह गया
हृदय में उमड़-घुमड़कर
नित्य नए साजों में सजकर
नित्य नए तारों में बजकर
नित्य नए छंदों में रचकर
बन गया
पक्षियों का कलरव
झरनों का स्वर
पत्तियों का मर्मर
सम्पूर्ण जगत का संगीत अमर
जो प्यार रह गया
पथ में भटक-भटककर
नित्य नर परिधानों में सजकर
नित्य नए उच्छवासों में रंगकर
नित्य नए भावों में रचकर
बन गया
कण-कण का
तृण-तृण का
जड-चेतन का
समग्र विश्व का प्रेम चिरंतन।
१ अप्रैल २००४
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