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मृत्यु
मृत्यु रे! तुम जब चाहो, आ जाना
जीवन का रस पीओ
रोम-रोम से, छिद्र-छिद्र से
जब तक रहे प्यार
जब चुक जाए उसकी धार
एक और क्षण भी रूकना होगा हार
खोल-खोल कर सब रुद्ध द्वार
बिन आँसू, बिन आस
निकला जाओ उस पार
मृत्यु रे! तुम जब चाहो, आ जाना
केवल एक दिन पहले बतला देना
द्वार मेरा मत खटखटाना
ब्रह्म-मुहूर्त में निर्जन पथ पर
तुम मेरी प्रतीक्षा करना
कहीं पत्तों पर जमी ओस
की बूँदें झरने न लगे
कहीं नीडों में विहग
शिशु जाग न उठे
कहीं रात लहरों पर
सिहरने न लगे
इसलिए मैं आऊँगा धीरे-धीरे
तुम मेरी प्रतीक्षा करना
मृत्यु रे! तुम जब चाहो, आ जाना।
१ अप्रैल २००४
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