याद
बिछुडने के बाद
हमारी दुनिया उतनी ही अलग हो जाती हैं
जितनी कि पहले थी
सिर्फ तन जाती है
उसके बीच एक उदासी की डोर
उदासी भी कहाँ टिक पाती है
वो तो कोहरे की तरह फट जाती है
या छट जाती है
तब गर्मी की
किसी तपती उदास दुपहरी में
जब समय की साँस थम-सी जाती है
सन्नाटे की फाँस में अटककर
कौंध-सी जाती है
याद।
१ अप्रैल २००४
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